खाप पंचायत का दरकता आधार
सुभाष चन्द्र हिंदी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र
पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा दलित-उत्पीडऩ की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं केकारण तथा अपनी इच्छा से विवाह करने पर इज्जत-रक्षा, संस्कृति-रक्षा के नाम पर नौजवानों की हत्याओं के कारण जाना जा रहा है। कोई महीना नहीं गुजरता होगा जब पूरी मानवता का शर्म से सिर नहीं झुकता होगा। दुलीना, गोहाना, हरसोला और मिर्चपुर काण्ड की दहशत हरियाणा की अधिकाशं आबादी की जहन में ताजा है। ये ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाएं हैं जो मीडिया के जरिये पूरी दुनिया में पहुंची हैं, वरना घटनाएं तो हर दिन ही घटती हैं। अन्तरजातीय विवाह, एक गांव में विवाह, पड़ोस के गांव में विवाह, एक गोत्र में विवाह के अनेक मामलों में अपनी इच्छा से विवाह करने वाले युवक-युवतियों को जान गंवानी पड़ी है।
लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, सस्सी-पुन्नू के किस्से इस क्षेत्र में क्लासिक बन चुके हैं। सामन्ती-मूल्यों से परिचालित समाज में प्रेम करने वालों को जान की कीमत हमेशा चुकानी पड़ी है। प्रेम मनुष्य का ऐसा स्थायी भाव है, जो सामन्ती समाज के बंधनों को स्वीकार नहीं करता और जाति-धर्म-क्षेत्र की सीमाओं को लांघ जाता है। सामन्ती तत्त्वों को मानवता से अधिक अपना वर्चस्व प्यारा होता है। प्रेम के बराबरीपूर्ण रिश्ते में उन्हें अपने वर्चस्व को चुनौती नजर आती है और इसे ही बचाने के लिए प्रेमियों का उनका कोपभाजन बनना पड़ता है। शायद मनोज-बबली हों या अन्य प्रेमी जो अपनी जान को दांव पर लगाकर भी विवाह करके साथ-साथ रहना चाहते हैं, उन्हें आज के प्रेमी ही कहा जा सकता है। घर-परिवार की इज्जत अथवा सामाजिक डर से घबराकर नहर में डूबकर, रेल के नीचे कटकर, जहर खाकर जान देने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं की खबरों से मीडिया शायद ही किसी दिन अछूता रहता होगा।
सामन्ती समाज की परम्पराओं को ढोने वाली हरियाणा में खाप-पंचायतें हैं, जो जाति-विशेष के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए नए समाज के मूल्यों का अंकुर होते ही नष्ट कर देना चाहती है। इसीलिए वे गोहाना में परम्परागत तौर पर दबे लोगों का सबक सिखाने के लिए कई गांवों की पंचायत में फैसला लिया जाता है। दुलीना में पांच निर्दोषों की पीट-पीटकर हत्या करने वालों को बचाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा देती है। मिर्चपुर में विकलांग बच्ची व उसके पिता को जिन्दा जलाने व पूरी बस्ती को जलाकर राख कर देने वालों पर कार्रवाही होने से पहले ही निर्दोषों को न पकड़ा जाए इसकी धमकियां देना शुरू कर देती है। दोषियों को पकड़वाने और पकडऩे के मामले में उनकी चुप्पी में उनका जातिगत चरित्र छुपा है।
मनोज-बबली के हत्यारों को छुड़ाने के लिए धन एकत्रित करने व राजनीतिक दबाब डालने के लिए बड़े-बड़े इकट्ठ किए जाते हैं। जो कभी अन्य सामाजिक समस्याओं को दूर करने अथवा न्याय प्राप्त करने के लिए कभी नहीं किए गए। मजोज-बबली की हत्या में शामिल पंचायतियों को जाति-पंचायत सम्मानित करके गर्व महसूस करती है।
खाप पंचायतें इस हद तक चली जाती हैं कि वे मानवीय अपेक्षाओं और कानूनी सीमाओं को भी लांघ जाती हैं, तो उसके पीछे व्यक्तिगत रंजिश व जमीन-संपति अथवा राजनीतिक आदि तुच्छ स्वार्थ भी होंगे। लेकिन केवल इन्हीं की वजह से कोई इस हद तक नहीं जाता। खाप पंचायतों के प्रतिनिधि कई सारे खोखले तर्क अपने कृत्यों को छुपाने के लिए दे रहे हैं, लेकिन बहुत सारे निहायत ही बचकाना व हास्यास्पद हैं, जिसे खाप पंचायतों के हमदर्द भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। समाज के विकास में बाधक शक्तियों की हमेशा यह कोशिश रहती है कि वह अपनी बातों को तार्किक आधार देने के लिए विज्ञान का सहारा लेता है। विज्ञान को अपने ढंग से ही प्रयोग करता है।
खाप पंचायती गोत्र विवाह के मामले में आम लोगों में अपने विचार की वैधता के लिए संस्कृति-रक्षा यानी अतीत का सहारा ले रही हैं, दूसरी ओर भावी पीढिय़ां विकलांग हो जाएंगी कहकर भविष्य के प्रति चिन्ता जता रही हैं। जहां तक संस्कृति-रक्षा या रीति-रिवाजों को बचाने की बात है, तो संस्कृति या रीति-रिवाज कोई बने-बनाए नहीं होते और आने वाली पीढिय़ां उनकी अनुपालना मात्र नहीं करती, बल्कि हर पीढ़ी अपनी जरुरत के अनुसार उनमें परिवर्तन करती है। और इसीसे समाज व संस्कृति का विकास होता है। विवाह की परंपराओं और तरीकों में भी परिवर्तन होता रहा है। स्वयं खाप पंचायती मानते हैं कि पहले शादी में चार गोत्र यानी मां, दादी, नानी व स्वयं के गोत्र में शादी नहीं होती थी। फिर जब यह व्यवस्था शादी में बाधा बनने लगी तो नानी के गोत्र की अनदेखी की गई और जब दो गोत्र छोडऩे से भी शादी में दिक्कत आने लगी तो दादी के गोत्र की भी अनदेखी होने लगी। आने पीढ़ी हो सकता है कि गोत्रों पर विचार ही न करे।
कुछ वर्ष पहले तकशादी से पहले लड़के और लड़की का मिलना भी मर्यादा व संस्कृति के खिलाफ माना जाता रहा है, लेकिन अब यह आम प्रचलन में है। लड़के वाले अब बाकायदा कार्यक्रम बनाकर लड़की को देखने आते हैं और कोई बुरा नहीं मानता, बल्कि लड़के और लड़की का विवाह से पहले मिलना, एक दूसरे के स्वभाव को जानना भावी रिश्ते के लिए अच्छा माना जाता है।
तालाब का पानी प्रयोग लायक बनाए रखने के लिए उसमें हमेशा जाता पानी डाला जाता है संस्कृति के तालाब में ताजगी की आवश्यकता होती है। अपरिवर्तनशील सोच को अपनाए हुए वर्चस्वशाली लोग कभी स्वीकार नहीं करते। लेकिन परिवर्तन किसी से इजाजत लेकर नहीं होता। वैसे भी जिस समाज से इतने आक्रांता गुजरे हों उसमें नस्ल-जाति शुद्धता की बात करना बेमानी है। इज्जत की अवधारणा, भाईचारे की अवधारणा तथा पारिवारिक रिश्तों की अवधारणा को पुनर्परिभाषित करने की जरुरत है। अपने गांव में आई ब्याहता को अपनी बहू या भाभी के रूप में देखने की दृष्टि तथा अपने ही गोत्र की लड़की को बहन मानने के रिश्ते को विस्तार देने की आवश्यकता है।
जहां तक यह बात है कि एक गोत्र में शादी करने से नस्लें खराब हो जाएंगी, यह सबकी चिन्ता का विषय है, लेकिन इस संबंध में मनुष्यों पर कोई अध्ययन नहीं है। किसी बात को वैज्ञानिक दृष्टि से कहने के लिए एक गोत्र में कम से कम विवाह हों और उनके बच्चों पर पडऩे वाले प्रभाव के अध्ययन से ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ। असल में तो अभी तक एक ही गोत्र से संबंध रखने वाले लड़का-लड़की के बीच पचास शादियां ही नहीं हुई होगी। उन परीक्षण बात तो अभी दूर है। यदि अनुभव से देखा जाए तो बहुत से समुदाय हैं, जिनमें अपने रिश्तेदारों में ही विवाह करने की परम्परा है तो उन पर इस तरह के नकारात्मक प्रभाव देखने में नहीं आते। पंजाबियों, कंबोज, सिखों तथा मुसलमानों में सैंकड़ों पीढिय़ों से इस तरह के विवाह हो रहे हैं।
खाप पंचायतों ने हिन्दू विवाह कानून में संशोधन का नया राग अलापना शुरू किया है। असल में भारतीय संविधान व्यक्तियों की स्वतंत्रता को महत्त्व देता है। विवाह वहां दो व्यक्तियों के बीच में है, न कि दो गोत्रों, क्षेत्रों, समुदायों अथवा अन्य किसी सामूहिक पहचान के। यदि कानून से ही सभी समस्याओं का समाधान होता तो भारत में हर अपराध के लिए कानून है, लेकिन हर रोज कानून की उलंघना के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। दूसरे, भारत की तो बात ही क्या है, हरियाणा में ही शादियों के अनेक प्रकार हैं। एक ही गांव में शादियां भी होती हैं और अपनी सगी बहनों को छोड़कर अपने नजदीकी रिश्तों में भी शादियां करने की परम्पराएं हैं। खुद चौटाला गांव के लड़के-लड़कियों में ही सैंकड़ों शादियां हो रखी हैं।
यह मामला कानून-व्यवस्था का नहीं है, इस पर कई तरह से विचार करने की आवश्यकता है। असल में प्रेम साथ रहने से ही होता है। जिन लोगों को किसी भी कारण से गांवों से बाहर जाने का मौका मिलता है। खाप का दायरा गांव ही है, शहरों पर उनके कानून लागू नहीं होते। गांव के लड़के-लड़कियां अपने सगोत्रियों या अन्य जातियों के साथ ही तो रहते हैं, इसलिए जब तक इस तरह की स्थिति है तो किसी भी कानून या रिवाज से इस बात पर अंकुश लगने वाला नहीं है।
जहां तक खाप पंचायतों की भूमिका की बात है, उन्होंने सारे गांव की इज्जज को ठेका लिया हुआ है। उनकी इज्जत की परिभाषा में बलात्कार की घटनाएं नहीं आती, चंूकि वह ताकतवर का औजार है। अवैध संबंधों से खाप पंचायतियों को कोई दिक्कत नहीं है, जिसके चलते गांव की कितनी ही किशोरियां विवाह से पहले ही गर्भवती हो रही हैं, लेकिन ज्यों ही वह रिश्ता वैधता प्राप्त करने लगता है तो खाप पंचायतियों को रोजगार मिल जाता है। अपनी इच्छा से विवाह करने में तो परिवार-गांव की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन अपने ही बेटा-बेटियों, बहनों की हत्या करने में इज्जत प्राप्त कर ली जाती है। इज्जत की इन परिभाषाओं को व्यापक दायरों में सोचने की आवश्यकता है। मानवता की इज्जत मानव-मूल्यों की रक्षा करने में ही होती है। मानव जीवन सब धारणाओं से कीमती है। अन्तत: मानव की सुविधा के लिए ही सब रीति-रिवाज व मर्यादाएं बनी हुई हैं न कि मानव इनकी अनुपालना के लिए बना है। यदि ये नियम जीवन में बाधा बनते हैं तो अन्तत: रीति-रिवाजों को ही बदलना होता है।
हरियाणा की इन बातों से सारे विश्व में बहुत बदनामी हो चुकी है। मानवता में विश्वास रखने वाले हरियाणा के लोगों को ही आगे आना होगा। खाप पंचायत तथा यहां की पिछड़ी सोच को धारण करने वाली और वोट को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाने वाली राजनीतिक पार्टियों से कोई उम्मीद नजर नहीं आती। खाप पंचायतों ने अभी तक किसी वर्चस्वी राजनीतिक नेता पर हाथ नहीं डाला है। हरियाणा के कितने ही नेताओं के बच्चों ने अन्तरजातीय विवाह किये हुए हैं। असल में यह ताकत का खेल भी है। खाप पंचायतों के कोप का शिकार कमजोर ही हुए हैं।
खाप पंचायतों को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए उनके पास बहुत से मुद्दे हैं । मसलन् हरियाणा विवाह के ऐसे बहुत से मामले हैं, जिनमें लड़की अपने मां-बाप के घर बैठी हैं। न तो तलाक है और न ही दम्पति साथ साथ रह रहे हैं। खाप पंचायतों ने इसे कभी समस्या के तौर पर रेखांकित ही नहीं किया, यदि वे ऐसे मामलों को संबोधित करते तो ज्यादा बेहतर था।
सुभाष चन्द्र हिंदी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र
पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा दलित-उत्पीडऩ की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटनाओं केकारण तथा अपनी इच्छा से विवाह करने पर इज्जत-रक्षा, संस्कृति-रक्षा के नाम पर नौजवानों की हत्याओं के कारण जाना जा रहा है। कोई महीना नहीं गुजरता होगा जब पूरी मानवता का शर्म से सिर नहीं झुकता होगा। दुलीना, गोहाना, हरसोला और मिर्चपुर काण्ड की दहशत हरियाणा की अधिकाशं आबादी की जहन में ताजा है। ये ऐसी दिल दहला देने वाली घटनाएं हैं जो मीडिया के जरिये पूरी दुनिया में पहुंची हैं, वरना घटनाएं तो हर दिन ही घटती हैं। अन्तरजातीय विवाह, एक गांव में विवाह, पड़ोस के गांव में विवाह, एक गोत्र में विवाह के अनेक मामलों में अपनी इच्छा से विवाह करने वाले युवक-युवतियों को जान गंवानी पड़ी है।
लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, सस्सी-पुन्नू के किस्से इस क्षेत्र में क्लासिक बन चुके हैं। सामन्ती-मूल्यों से परिचालित समाज में प्रेम करने वालों को जान की कीमत हमेशा चुकानी पड़ी है। प्रेम मनुष्य का ऐसा स्थायी भाव है, जो सामन्ती समाज के बंधनों को स्वीकार नहीं करता और जाति-धर्म-क्षेत्र की सीमाओं को लांघ जाता है। सामन्ती तत्त्वों को मानवता से अधिक अपना वर्चस्व प्यारा होता है। प्रेम के बराबरीपूर्ण रिश्ते में उन्हें अपने वर्चस्व को चुनौती नजर आती है और इसे ही बचाने के लिए प्रेमियों का उनका कोपभाजन बनना पड़ता है। शायद मनोज-बबली हों या अन्य प्रेमी जो अपनी जान को दांव पर लगाकर भी विवाह करके साथ-साथ रहना चाहते हैं, उन्हें आज के प्रेमी ही कहा जा सकता है। घर-परिवार की इज्जत अथवा सामाजिक डर से घबराकर नहर में डूबकर, रेल के नीचे कटकर, जहर खाकर जान देने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं की खबरों से मीडिया शायद ही किसी दिन अछूता रहता होगा।
सामन्ती समाज की परम्पराओं को ढोने वाली हरियाणा में खाप-पंचायतें हैं, जो जाति-विशेष के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए नए समाज के मूल्यों का अंकुर होते ही नष्ट कर देना चाहती है। इसीलिए वे गोहाना में परम्परागत तौर पर दबे लोगों का सबक सिखाने के लिए कई गांवों की पंचायत में फैसला लिया जाता है। दुलीना में पांच निर्दोषों की पीट-पीटकर हत्या करने वालों को बचाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा देती है। मिर्चपुर में विकलांग बच्ची व उसके पिता को जिन्दा जलाने व पूरी बस्ती को जलाकर राख कर देने वालों पर कार्रवाही होने से पहले ही निर्दोषों को न पकड़ा जाए इसकी धमकियां देना शुरू कर देती है। दोषियों को पकड़वाने और पकडऩे के मामले में उनकी चुप्पी में उनका जातिगत चरित्र छुपा है।
मनोज-बबली के हत्यारों को छुड़ाने के लिए धन एकत्रित करने व राजनीतिक दबाब डालने के लिए बड़े-बड़े इकट्ठ किए जाते हैं। जो कभी अन्य सामाजिक समस्याओं को दूर करने अथवा न्याय प्राप्त करने के लिए कभी नहीं किए गए। मजोज-बबली की हत्या में शामिल पंचायतियों को जाति-पंचायत सम्मानित करके गर्व महसूस करती है।
खाप पंचायतें इस हद तक चली जाती हैं कि वे मानवीय अपेक्षाओं और कानूनी सीमाओं को भी लांघ जाती हैं, तो उसके पीछे व्यक्तिगत रंजिश व जमीन-संपति अथवा राजनीतिक आदि तुच्छ स्वार्थ भी होंगे। लेकिन केवल इन्हीं की वजह से कोई इस हद तक नहीं जाता। खाप पंचायतों के प्रतिनिधि कई सारे खोखले तर्क अपने कृत्यों को छुपाने के लिए दे रहे हैं, लेकिन बहुत सारे निहायत ही बचकाना व हास्यास्पद हैं, जिसे खाप पंचायतों के हमदर्द भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। समाज के विकास में बाधक शक्तियों की हमेशा यह कोशिश रहती है कि वह अपनी बातों को तार्किक आधार देने के लिए विज्ञान का सहारा लेता है। विज्ञान को अपने ढंग से ही प्रयोग करता है।
खाप पंचायती गोत्र विवाह के मामले में आम लोगों में अपने विचार की वैधता के लिए संस्कृति-रक्षा यानी अतीत का सहारा ले रही हैं, दूसरी ओर भावी पीढिय़ां विकलांग हो जाएंगी कहकर भविष्य के प्रति चिन्ता जता रही हैं। जहां तक संस्कृति-रक्षा या रीति-रिवाजों को बचाने की बात है, तो संस्कृति या रीति-रिवाज कोई बने-बनाए नहीं होते और आने वाली पीढिय़ां उनकी अनुपालना मात्र नहीं करती, बल्कि हर पीढ़ी अपनी जरुरत के अनुसार उनमें परिवर्तन करती है। और इसीसे समाज व संस्कृति का विकास होता है। विवाह की परंपराओं और तरीकों में भी परिवर्तन होता रहा है। स्वयं खाप पंचायती मानते हैं कि पहले शादी में चार गोत्र यानी मां, दादी, नानी व स्वयं के गोत्र में शादी नहीं होती थी। फिर जब यह व्यवस्था शादी में बाधा बनने लगी तो नानी के गोत्र की अनदेखी की गई और जब दो गोत्र छोडऩे से भी शादी में दिक्कत आने लगी तो दादी के गोत्र की भी अनदेखी होने लगी। आने पीढ़ी हो सकता है कि गोत्रों पर विचार ही न करे।
कुछ वर्ष पहले तकशादी से पहले लड़के और लड़की का मिलना भी मर्यादा व संस्कृति के खिलाफ माना जाता रहा है, लेकिन अब यह आम प्रचलन में है। लड़के वाले अब बाकायदा कार्यक्रम बनाकर लड़की को देखने आते हैं और कोई बुरा नहीं मानता, बल्कि लड़के और लड़की का विवाह से पहले मिलना, एक दूसरे के स्वभाव को जानना भावी रिश्ते के लिए अच्छा माना जाता है।
तालाब का पानी प्रयोग लायक बनाए रखने के लिए उसमें हमेशा जाता पानी डाला जाता है संस्कृति के तालाब में ताजगी की आवश्यकता होती है। अपरिवर्तनशील सोच को अपनाए हुए वर्चस्वशाली लोग कभी स्वीकार नहीं करते। लेकिन परिवर्तन किसी से इजाजत लेकर नहीं होता। वैसे भी जिस समाज से इतने आक्रांता गुजरे हों उसमें नस्ल-जाति शुद्धता की बात करना बेमानी है। इज्जत की अवधारणा, भाईचारे की अवधारणा तथा पारिवारिक रिश्तों की अवधारणा को पुनर्परिभाषित करने की जरुरत है। अपने गांव में आई ब्याहता को अपनी बहू या भाभी के रूप में देखने की दृष्टि तथा अपने ही गोत्र की लड़की को बहन मानने के रिश्ते को विस्तार देने की आवश्यकता है।
जहां तक यह बात है कि एक गोत्र में शादी करने से नस्लें खराब हो जाएंगी, यह सबकी चिन्ता का विषय है, लेकिन इस संबंध में मनुष्यों पर कोई अध्ययन नहीं है। किसी बात को वैज्ञानिक दृष्टि से कहने के लिए एक गोत्र में कम से कम विवाह हों और उनके बच्चों पर पडऩे वाले प्रभाव के अध्ययन से ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। अभी तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ। असल में तो अभी तक एक ही गोत्र से संबंध रखने वाले लड़का-लड़की के बीच पचास शादियां ही नहीं हुई होगी। उन परीक्षण बात तो अभी दूर है। यदि अनुभव से देखा जाए तो बहुत से समुदाय हैं, जिनमें अपने रिश्तेदारों में ही विवाह करने की परम्परा है तो उन पर इस तरह के नकारात्मक प्रभाव देखने में नहीं आते। पंजाबियों, कंबोज, सिखों तथा मुसलमानों में सैंकड़ों पीढिय़ों से इस तरह के विवाह हो रहे हैं।
खाप पंचायतों ने हिन्दू विवाह कानून में संशोधन का नया राग अलापना शुरू किया है। असल में भारतीय संविधान व्यक्तियों की स्वतंत्रता को महत्त्व देता है। विवाह वहां दो व्यक्तियों के बीच में है, न कि दो गोत्रों, क्षेत्रों, समुदायों अथवा अन्य किसी सामूहिक पहचान के। यदि कानून से ही सभी समस्याओं का समाधान होता तो भारत में हर अपराध के लिए कानून है, लेकिन हर रोज कानून की उलंघना के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। दूसरे, भारत की तो बात ही क्या है, हरियाणा में ही शादियों के अनेक प्रकार हैं। एक ही गांव में शादियां भी होती हैं और अपनी सगी बहनों को छोड़कर अपने नजदीकी रिश्तों में भी शादियां करने की परम्पराएं हैं। खुद चौटाला गांव के लड़के-लड़कियों में ही सैंकड़ों शादियां हो रखी हैं।
यह मामला कानून-व्यवस्था का नहीं है, इस पर कई तरह से विचार करने की आवश्यकता है। असल में प्रेम साथ रहने से ही होता है। जिन लोगों को किसी भी कारण से गांवों से बाहर जाने का मौका मिलता है। खाप का दायरा गांव ही है, शहरों पर उनके कानून लागू नहीं होते। गांव के लड़के-लड़कियां अपने सगोत्रियों या अन्य जातियों के साथ ही तो रहते हैं, इसलिए जब तक इस तरह की स्थिति है तो किसी भी कानून या रिवाज से इस बात पर अंकुश लगने वाला नहीं है।
जहां तक खाप पंचायतों की भूमिका की बात है, उन्होंने सारे गांव की इज्जज को ठेका लिया हुआ है। उनकी इज्जत की परिभाषा में बलात्कार की घटनाएं नहीं आती, चंूकि वह ताकतवर का औजार है। अवैध संबंधों से खाप पंचायतियों को कोई दिक्कत नहीं है, जिसके चलते गांव की कितनी ही किशोरियां विवाह से पहले ही गर्भवती हो रही हैं, लेकिन ज्यों ही वह रिश्ता वैधता प्राप्त करने लगता है तो खाप पंचायतियों को रोजगार मिल जाता है। अपनी इच्छा से विवाह करने में तो परिवार-गांव की इज्जत मिट्टी में मिल जाती है, लेकिन अपने ही बेटा-बेटियों, बहनों की हत्या करने में इज्जत प्राप्त कर ली जाती है। इज्जत की इन परिभाषाओं को व्यापक दायरों में सोचने की आवश्यकता है। मानवता की इज्जत मानव-मूल्यों की रक्षा करने में ही होती है। मानव जीवन सब धारणाओं से कीमती है। अन्तत: मानव की सुविधा के लिए ही सब रीति-रिवाज व मर्यादाएं बनी हुई हैं न कि मानव इनकी अनुपालना के लिए बना है। यदि ये नियम जीवन में बाधा बनते हैं तो अन्तत: रीति-रिवाजों को ही बदलना होता है।
हरियाणा की इन बातों से सारे विश्व में बहुत बदनामी हो चुकी है। मानवता में विश्वास रखने वाले हरियाणा के लोगों को ही आगे आना होगा। खाप पंचायत तथा यहां की पिछड़ी सोच को धारण करने वाली और वोट को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाने वाली राजनीतिक पार्टियों से कोई उम्मीद नजर नहीं आती। खाप पंचायतों ने अभी तक किसी वर्चस्वी राजनीतिक नेता पर हाथ नहीं डाला है। हरियाणा के कितने ही नेताओं के बच्चों ने अन्तरजातीय विवाह किये हुए हैं। असल में यह ताकत का खेल भी है। खाप पंचायतों के कोप का शिकार कमजोर ही हुए हैं।
खाप पंचायतों को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए उनके पास बहुत से मुद्दे हैं । मसलन् हरियाणा विवाह के ऐसे बहुत से मामले हैं, जिनमें लड़की अपने मां-बाप के घर बैठी हैं। न तो तलाक है और न ही दम्पति साथ साथ रह रहे हैं। खाप पंचायतों ने इसे कभी समस्या के तौर पर रेखांकित ही नहीं किया, यदि वे ऐसे मामलों को संबोधित करते तो ज्यादा बेहतर था।