हाशिये के लोगों की औपन्यासिकता का विमर्श
सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर,हिन्दी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र
वीरेन्द्र यादव रचित 'उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता' पुस्तक हिन्दी आलोचना और विशेषकर उपन्यास आलोचना के लिए महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक काल के अन्तर्द्वन्द्वों को उपन्यास ने मुख्यत: व्यक्त किया है। अपने समय के विमर्शें को भी स्थान दिया है। यद्यपि आधुनिक काल में जन सामान्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं को साहित्य में प्रमुखता...
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दलित शोषण का औजार : भक्ति
By प्रोफेसर सुभाष सैनी दिसंबर 27, 2010
दलित शोषण का औजार : भक्ति
('भक्ति और जन' के बहाने )
सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र
'भक्ति और जन' डा. सेवासिंह की आलोचनात्मक कृति है जो भारतीय प्रत्ययवाद की दार्शनिक परम्परा का विश्लेषण करके उसके प्रति आलोचनात्मक समझ पैदा करती है। कई महत्त्वपूर्ण प्रस्थापनाओं को अंजाम देती यह कृति भारतीय दर्शन, मत-मतान्तरों, धर्मशास्त्रों, पुराणों-मिथकों, पूजा-उपासना की विधियों-पद्धतियों में रूचि रखने वाले...
मुक्ति-पथ'ः दलित-वाम एका पथ
By प्रोफेसर सुभाष सैनी दिसंबर 26, 2010
'मुक्ति-पथ'
दलित-वाम एका पथ
अभय मोर्य का 'मुक्ति-पथ' उपन्यास समाज में विभिन्न शक्तियों के बीच बहुस्तरीय टकराहट व अन्तविर्रोधों को अभिव्यक्त करते हुए समाज में सक्रिय विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक शक्तियों की पहचान कराता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने आए चार नवयुवकों के माध्यम से शहरी उच्चवर्ग और ग्रामीण जीवन के बीच मौजूद भारी अन्तर दर्शाने के माध्यम से सांस्कृतिक अन्तर को भी रेखांकित करता है। दलित राजनीति की अवसरवादी और मुक्तिकामी...