दाराशिकोह रचित 'मजमा-उल-बहरीन' की भूमिका से

फकीर दाराशिकोह कहता है कि हकीकतों की हकीकत को दरियाफ्त करने के बाद सूफियों के हकीकी मज़हब की बारीकियों को समझने के बाद और असली सचाईयों को जानने के बाद मेरी यह हुई की मैं हिंदुस्तान के बुजर्गों और संतों का मत जानूं। उनके सत्संग के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की दोनों धर्मों हिन्दू एवम इस्लाम में ईश्वर प्राप्ति के मार्ग के संबंध में मात्र शाब्दिक भेद है. फलस्वरूप मैंने दोनों प्रकार के विचारकों का सार तत्त्व लेकर यह रचना की है जिसका नाम रखा है 'मजमा-उल-बहरीन' अर्थात सागर संगम ।
दाराशिकोह रचित 'मजमा-उल-बहरीन' की भूमिका से