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हाशिये के लोगों की औपन्यासिकता का विमर्श

हाशिये के लोगों की औपन्यासिकता का विमर्श सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर,हिन्दी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र वीरेन्द्र यादव रचित 'उपन्यास और वर्चस्व की सत्ता' पुस्तक हिन्दी आलोचना और विशेषकर उपन्यास आलोचना के लिए महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक काल के अन्तर्द्वन्द्वों को उपन्यास ने मुख्यत: व्यक्त किया है। अपने समय के विमर्शें को भी स्थान दिया है। यद्यपि आधुनिक काल में जन सामान्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं को साहित्य में प्रमुखता...

संस्कृति और साम्प्रदायिकता

सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र साम्प्रदायिकता अपने को संस्कृति के रक्षक के तौर पर प्रस्तुत करती है, जबकि वास्तव में वह संस्कृति को नष्ट कर रही होती है। साम्प्रदायिक लोग अपने को सांस्कृतिक पुरूष, अपनी राजनीति को संस्कृति के रूप में पेश करते हैं, संस्कृति की शुद्धता व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की लफ्फाजी के लिए प्रख्यात है। हिन्दी के महान रचनाकार मुन्शी प्रेमचन्द ने कहा था कि 'साम्प्रदायिकता हमेंशा...

साम्प्रदायिकता

साम्प्रदायिकतासुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र साम्प्रदायिकता मात्र दो धर्मों के बीच विवाद, झगड़ों व हिंसा की घटनाओं का ही नाम नहीं है दो धार्मिक समुदायों के विवादों तक सीमित नहीं बल्कि एक विचारधारा का नया रूप धारण कर लिया है, अपनी एक तर्क-पद्धति विकसित कर ली है जिसके आधार पर वह समाज के विभिन्न पक्षों पर विचार करती है। समझ के स्तर पर साम्प्रदायिकता को एक विचारधारा के रूप में न देख पाना साम्प्रदायिकता...

धर्म बनाम साम्प्रदायिकता

धर्म बनाम साम्प्रदायिकता सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र आधुनिक भारत पर साम्प्रदायिकता की काली छाया लगातार मंडराती रही है। साम्प्रदायिकता के कारण भारत का विभाजन हुआ और अब तक साम्प्रदायिक हिंसा में हजारों लोगों की जानें जा चुकी हैं और लाखों के घर उजड़े हैं, लाखों लोग विस्थापित होकर शरणार्थी का जीवन जीने पर मजबूर हुए हैं। साम्प्रदायिकता के साथ धर्म जुड़ा रहता है, जिस कारण साम्प्रदायिकता की समस्या...

हिन्दी दुर्दशा

हिन्दी दुर्दशा सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र मनुष्य के सांस्कृतिक विकास में भाषा का महत्त्वपूर्ण योगदान है। मनुष्य के साथ-साथ भाषा और भाषा के साथ-साथ मनुष्य विकसित हुआ है। भाषा विचारों के आदान प्रदान का ही नहीं, बल्कि सोचने का माध्यम भी है। भाषा की सीमा और विस्तार का अर्थ मनुष्य के ज्ञान और विस्तार से है। इसीलिए महापुरुषों ने अपनी भाषा व समाज को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषा के ज्ञान को अपनी...

आम्बेडकर : मानवाधिकार कार्यकर्ता

आम्बेडकर : मानवाधिकार कार्यकर्ता सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र विश्व के उत्पीडि़त वर्गों के संघर्षों के प्रतिफल के रूप में मानवाधिकारों की घोषणा बेशक 1948 में हुई और 1993 में भारत में भी राष्ट्रीय मानवाधिकार का आयोग गठित किया गया। राज्य द्वारा मानवाधिकारों की स्वीकृति से निश्चित तौर पर उत्पीडि़त वर्गों के आन्दोलनों को बल मिला है, लेकिन उत्पीडि़त वर्गों के संघर्ष तभी से शुरू हो गए थे, जब से...

बुल्लेशाह

बुल्लेशाह सुभाष चन्द्र, एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी-विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र पंजाब विभिन्न संस्कृतियों, नस्लों, परम्पराओं और धर्मों के समन्वय का केन्द्र बिन्दु रहा है। यहां लगभग 4000 साल पहले सिन्धु घाटी की सभ्यता पली थी। उसके बाद यहां मध्य एशिया से आर्य आए, इसके बाद सीथियन, हूण, ग्रीक, तुर्क, फारसी, अफगान, मुगल आए। सभी ने भारत की साझी संस्कृति को समृद्घ किया। बुल्लेशाह 16वीं शती में, कसूर में हुए। इनका असली नाम अब्दुल्ला शाह...